Volume : 9, Issue : 3, MAR 2023
PRACHEN BHARAT MEIN STRIYON KI DASHA : AITIHASIK VISHLESHAN (प्राचीन भारत में स्त्रियों की दशा : ऐतिहासिक विश्लेषण)
DR. SURBHI (डॉ सुरभि)
Abstract
आदिकाल से ही समाज में नारी का गरिमामय एवं महत्वपूर्ण स्थान रहा है। नारी को जीवन की आधारशिला माना गया है। नारी को समाज में जो सम्मान मिला वह उसकी साधना, सत्यता, सहनशीलता, सौम्यता, आदि सहज गुणों का ही फल है। धन की अधिष्ठात्री लक्ष्मी, शक्तिदायिनी दुर्गा, ज्ञानदायनी माँ सरस्वती तथा जनकनन्दिनी सीता के रूप में नारी को समाज में सम्मान दिया जाता रहा है। उसे श्री और लक्ष्मी के रूप में मनुष्य के जीवन को सुख व समृद्धि से दीप्त व प्रकाशित करने वाली कहा गया है। नारी का आगमन पुरुष के लिये शुभ सौरभमय और सम्मान का प्रतीक माना जाता है। नारी के बिना घर की कल्पना भी नहीं की जा सकती, क्योंकि यह मान्यता रही है कि जिस प्रकार प्रकृति के बिना पुरूष (परमात्मा) का कार्य अपूर्ण रहता है ठीक उसी प्रकार नारी के बिना नर का जीवन भी अधुरा है। नारी व नर को जीवन रूपी गाड़ी के दो चक्रों के समान माना गया है. उनकी बराबरी ही जीवन रूपी गाड़ी को गतिशील रख सकती है। इसलिये नारी को पुरुष की अद्धांगिनी कहा गया है।
प्राचीन काल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो नारी का चित्र उस पर उज्जवल रूप से अंकित परिलक्षित होगा क्योंकि प्राचीन काल में नारी का सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक हर क्षेत्र में उचित स्थान था । जिसे प्रस्तुत शोधपत्र के द्वारा दर्शाने का प्रयास किया गया है।
Keywords
नारी, इतिहास, प्रतिष्ठा, वैदिक, धार्मिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक।
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References
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