Volume : 5, Issue : 7, JUL 2019
'वर्तमान युग में विमर्शवाद: दलित विमर्श की उपलब्धियाँ व मूल्यांकन' (INTERPRETATIONISM IN THE PRESENT ERA: ACHIEVEMENTS AND EVALUATION OF DALIT DISCOURSE.)
DR. SANJEEV KUMAR
Abstract
दलित साहित्य हिन्दी की आज एक स्थापित धारा बन चुकी है । इस चर्चा करने के साथ-साथ दलित शब्द पर भी विचार कर लेना आवश्यक है। वैसे तो बहुत सी धारणायें हैं, जो भÇान्तिपूर्ण हैं तथा समाज को भटकाती रही हैं, परन्तु यहाँ पर एक सुनिश्चित अर्थ का सामने आना आवश्यक है। 'दलित' किसे माना जाये ? इस सम्बंध में प्रमुखत: कई प्Çाकार के मत हैं। संकुचित अर्थ का क्षेत्र धार्मिक ग्रंथों तथा सामाजिक व्यवस्थाओ पर आधारित है जिसके अंतर्गत चतुर्थ वर्ग में आने वाली जातियों का वर्णन है। जबकि व्यापक अर्थ में दबाया हुआ व्यक्ति या समाज आता है, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म से सम्बंध रखता हो। 'दलित' का शाब्दिक अर्थ है जिसका दलन या उत्पीड़न किया गया हो। यह उत्पीड़न चाहे शास्त्र द्वारा किया गया हो या शस्त्र द्वारा। दलित साहित्य में प्Çायुक्त 'दलित' शब्द के अन्तर्गत संविधान द्वारा घोषित अनुसूचित जाति, जनजाति या पिछड़े वर्ग की जातियों के लोग ही नहीं आते अपितु 'दलित' शब्द एक संवेदन है, विचार है जिसका अर्थ दबाया गया से है, दबा हुआ नहीं।
Keywords
विमर्शवाद, दलित विमर्श, उपलब्धियाँ व मूल्यांकन
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References
१। दलित चेतना और भारतीय समाज, डाù। मौहम्मद अबीर उद्दीन, अंकित पब्लिकेशन, दिल्ली - ११०००९ । २। मेरा दलित चिंतन , डाù एन सिंह, कंचन प्Çाकाशन, दिल्ली-११००३२ । ३। हिन्दुत्व और दलित (कुछ प्रश्न, कुछ पिचार), जयप्Çाकाश कर्दम, सागर प्Çाकाशन, दिल्ली - ११००३२ । ४। इन्साइक्लोपीडिया।